Sunday, August 15, 2010

चन्द्रशेखर आजाद


आज भारतवर्ष की स्वाधीनता दिवस पर पेश है: एक महान :देशभक्त और  क्रांतिकारी की जीवनी, जिसने कभी आज़ाद भारत का सपना देखा था और अपनी नज़रिए से उसको पाने के अपना जीवन निव्छावर कर दिया|

 एक युवा जिसने अपने जीवन में २५ वसंत भी  नहीं देखे हों, जिसका नाम भगत सिंह जैसे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अत्यंत सम्मानित और लोकप्रिय क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानी  के साथ जब आज भी लिया जाता हो, जिसके शहीद होने पे महात्मा गाँधी, जवाहर लाल नेहरु, मदन मोहन मालवीय, मोहम्मद अली जिन्ना जैसे दिगज नेता  उसके सम्मान में कहने को मजबूर हो गए हों,  "चन्द्रशेखर सीताराम तिवारी" उर्फ़ "चन्द्रशेखर आजाद"  के अलावें और कौन हो सकता है|
"चन्द्रशेखर की मृत्यु से मेँ आहत हुं ऐसे व्यक्ति युग में एक बार ही जन्म लेते हेँ। फिर भी हमे अहिंसक रुप से ही विरोध क‍रना चाहिये।"  - महात्मा गांधी
"चन्द्रशेखर आजाद की शहादत से पूरे देश में आजादी के आंदोलन का नये रुप में शंखनाद होगा। आजाद की शहादत को हिदुंस्तान हमेशा याद रखेगा।"  - पण्डित जवाहर लाल नेहरू
"पण्डितजी की मृत्यु मेरी निजी क्षति हेँ मेँ इससे कभी उबर नही सकता।" - पण्डित मदन मोहन मालवीय
"देश ने एक सच्चा सिपाही खोया।"  - मोहम्मद अली जिन्ना
 
पण्डित सीताराम तिवारी और जगरानी देवी के सुपुत्र चन्द्रशेखर का जन्म भावरा ( मध्य प्रदेश के झाबुआ जिले) में  जुलाई २३, १९०६  को हुआ था|


१८९९  के अकाल के समय अपने निवास उत्तर-प्रदेश के उन्नाव जिले के बदरका गाँव को छोडकर पण्डित सीताराम तिवारी जी पहले अलीराजपुर रियासत में, फिर भावरा में जा बसे थे । चन्द्रशेखर आजाद के व्यक्तित्व पर अपने पिता का छाप साफ दिखाई देती ही | उन्हीं की तरह चन्द्रशेखर जी साहसी, स्वाभिमानी, हठी और वचन के पक्के थे।

भावरा  में अपने प्रारंभिक स्कूली शिक्षा प्राप्त करने के बाद, उच्च अध्ययन के लिए वाराणसी में संस्कृत पाठशाला  में प्रवेश लिया|  .१९१९ के जलियांवाला बाग (अमृतसर) नरसंहार ने  चंद्रशेखर जी को  काफी व्यथित किया| १९२१  में जब महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन शुरू किया तो चंद्रशेखर जी  ने  सक्रियता से भाग लिया और पंद्रह वर्ष की आयु में अपनी पहली सजा भी भुगती| उन्हें जब क्रांतिकारी गतिविधियों में लिप्त पकड़ा गया और  जब मजिस्ट्रेट ने उसका नाम पूछा, उन्होंने कहा "आजाद"|  कहते हैं कि  हर पन्द्रह बेतों की चोट पे युवा चंद्रशेखर की मुख से "भारत माता की जय" और "महात्मा गाँधी की जय" ही निकला|  तभी  से चंद्रशेखर जी  "चंद्रशेखर आजाद" के रूप में खुद की मर्जी से  प्रख्यात  हुए|  उन्ही दिनों  चंद्रशेखर आजाद ने कसम खाई है कि वह ब्रिटिश पुलिस द्वारा फिर  कभी गिरफ्तार नहीं होंगे, जीयेगे आज़ाद  और स्वतंत्र व्यक्ति के रूप में मर जायेंगे| 


फरवरी १९२२ में चौराचौरी की घटना के बाद गाँधी जी द्वारा असहयोग आंदोलन की वापसी ने भगतसिंह की तरह आज़ाद का भी गाँधी जी और  काँग्रेस से मोह भंग कर दिया|  अब आजाद अधिक आक्रामक और क्रांतिकारी तरीकों से स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए प्रतिबद्ध हो गये |

पण्डित रामप्रसाद बिस्मिल, शचीन्द्र सान्याल, जोगेशचन्द्र के साथ मिलकर चन्द्रशेखर आजाद ने उत्तर भारत के क्रान्तिकारियों को लेकर एक दल हिन्दुस्तानी प्रजातांत्रिक संघ (एचआरए) का गठन किया। काकोरी ट्रेन डकैती  हो या  भगतसिंह का असेम्बली में बम फेंकना  हो या साण्डर्स की हत्या का षडयंत्र या फिर यशपाल द्वारा 1929 में वायसराय की गाड़ी पर बम फेंकना हो,  इन सभी में चन्द्रशेखर आजाद का खुला योगदान था। वह आजाद ही थे जिन्होंने भगत सिंह, सुखदेव व राजगुरू की फांसी रुकवाने के लिए दुर्गा भाभी को गांधीजी के पास भेजा था जहां से उन्हें कोरा जवाब दे दिया गया था। आजाद ने अपने बूत ही झांसी और कानपुर में क्रान्तिकारियों के अड़डे बना दिये थे|


चंद्रशेखर आजाद ब्रिटिश पुलिस के लिए एक आतंक थे, जो  उन्हें  जिंदा या मुर्दा हर कीमत पर आपने रास्ते से हटाने की हर कोशिश कर रही थी|   २७  फरवरी १९३१  को यशपाल को समाजवाद के प्रशिक्षण के लिए रूस भेजे जाने सम्बंधी योजनाओं को अन्तिम रूप देने की इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में वह अपने साथियों के साथ चर्चा कर रहे थे, मुखबिर की सूचना पर उन्हें घेर लिया गया। आजाद ने अपने बाकी साथियों को वहां से निकलने का आदेश दिया और खुद अंग्रेजों से मोर्चा लेने लगे। उन्होंने तीन पुलिस वालों को तो मौत के घाट उतार दिया और सोलह को घायल कर दिया। अंत में जब एक गोली शेष बची तो उन्होंने मृत्युपर्यन्त आजाद रहने की अपनी प्रतिज्ञा को पूरी करते हुए आखिरी गोली स्वयं को ही मार ली। पुलिस  आजाद से इतनी भयभीत थी कि उनके मृत शरीर पर कई गोलियां दागने के  काफी देर बाद ही पास पहुंचने की हिम्मत जुटा पाई थी| अंग्रेजों ने चुपके से उनका अन्तिम संस्कार कर दिया लेकिन आजाद की शहादत ने देश में एक लहर फैला  दी। क्रान्तिकारियों ने शमशान से आजाद की अस्थियां सम्मानपूर्वक निकालते हुए शहर में जुलूस निकाला और इस जूलूस में इलाहाबाद समेत कई जिलों की जनता उमड़ पड़ी। अन्तिम विदाई सभा को शचीन्द्रनाथ सान्याल की पत्‍‌नी और जवाहर लाल नेहरू  ने सम्बोधित किया और इस सच्चे सपूत को विदाई दी। 
  विशाल ने मनोज प्रकाशन की यह हिंदी किताब विशेष तौर से आज का दिन यादगार बनाने के लिए  स्कैन किया है, उम्मीद है आप सभी पसंद  करेंगे| 

साथ में कुछ आजाद के कुछ वास्तविक चित्रों पे भी गौर फरमाइए:

Portrait of Chandrashekhar Azad



A letter by Chandrashekhar Azad

Azad with the wife and kids of Master Rudranarayan
Photo taken immediately after Azad shot himself dead


चित्रों का स्रोत: (Picasa Album by Madhukar B V )

जय हिंद!